अगर आपसे कहा जाए कि देश में एक ऐसा रेलवे ट्रैक है, जिस पर आजादी के इतने साल बाद भी अंग्रेजों का कब्जा है, तो शायद आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन यह सच है। ब्रिटेन की एक निजी कंपनी इस रेलवे ट्रैक का संचालन करती है। भारतीय रेलवे ने कई बार इसे खरीदने का प्रस्ताव रखा, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय रेलवे ब्रिटेन की एक निजी कंपनी को हर साल 1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी देती है।
हम बात कर रहे हैं ‘शंकुतला रेलवे ट्रैक’ की। इस ट्रैक पर केवल एक ही ‘शंकुतला पैसेंजर’ ट्रेन चलती थी। इसी के नाम पर इस ट्रैक को यह नाम भी मिला। यह रेलवे ट्रैक नैरो गेज का है। हालांकि इस ट्रैक पर चलने वाली शंकुलता पैसेंजर को फिलहाल बंद कर दिया गया है। लेकिन इस इलाके में रहने वाले लोग इसे फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं. यह ट्रैक अमरावती से महाराष्ट्र के मुर्तजापुर तक 190 किलोमीटर तक फैला है। शकुंतला एक्सप्रेस इस ट्रैक पर अपना सफर 6-7 घंटे में पूरा कर लेती थी।
रेलवे ट्रैक पर कई छोटे-छोटे स्टेशन हैं। यात्रा के दौरान ट्रेन अचलपुर, यवतमाल समेत 17 विभिन्न स्टेशनों पर रुकती है। इस ट्रेन में सिर्फ 5 डिब्बे थे, जिन्हें 70 साल तक भाप के इंजन से खींचा गया, हालांकि 1994 से इस ट्रेन में डीजल इंजन लगाया जाता रहा है। इस रेलवे ट्रैक पर जाने पर आपको अंग्रेजों के जमाने के सिग्नल और अन्य रेलवे उपकरण देखने को मिल जाएंगे। डीजल इंजन लगने के बाद बोगियों की संख्या भी बढ़कर 7 हो गई। ट्रेन के बंद होने तक इसमें रोजाना 1 हजार से ज्यादा लोग सफर करते थे।
अंग्रेजों के समय से महाराष्ट्र के अमरावती में कपास की खेती की जाती थी। इस रेलवे ट्रैक को अंग्रेजों ने अमरावती से मुंबई बंदरगाह तक कपास ले जाने के लिए बनवाया था। इस रेलवे ट्रैक को बनाने के लिए ब्रिटेन की क्लिक निक्सन एंड कंपनी ने सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) की स्थापना की। यवतमाल से मुंबई तक कपास की ढुलाई के लिए कंपनी ने 1903 में इन पटरियों का निर्माण शुरू किया था। 1916 में रेलवे लाइन बिछाने का काम भी पूरा हो गया। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो भारतीय रेलवे ने इस कंपनी के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत रेलवे हर साल कंपनी को रॉयल्टी देता है।