कुछ बड़े की उम्मीद और चाहत में NDA के केंद्रीय मंत्री की कुर्सी छोड़ने वाले उपेंद्र कुशवाहा अब अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के जनता दल यूनाईटेड (JDU) में विलय को अंतत: राजी हो गए हैं। इसी रविवार को मुहूर्त निकला है। इस विलय के समीकरण पर इनकार करते-करते कुशवाहा ने इतनी देर कर दी कि अब उनकी पार्टी का विलय औपचारिक ही रह गया है।
JDU उनकी पार्टी के कई नेताओं को तोड़ चुका था। अब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने सारी कसर निकाल दी। बताया जा रहा है कि RLSP की अंतिम बैठक 13 और 14 मार्च को होगी। इसके तुरंत बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में उपेंद्र कुशवाहा और इनके सभी नेता और कार्यकर्ता JDU में शामिल हो जाएंगे। RLSP के JDU में विलय की संभावना को देखते ही RLSP में भगदड़ मच गई है।
पिछले दिनों 42 नेताओं ने एक साथ RLSP से इस्तीफा देकर RJD का दामन थाम लिया है। शुक्रवार को भी 35 नेता RLSP छोड़ RJD में शामिल हो गए। इसके पहले कई नेता JDU में शामिल हो चुके थे।
उपेंद्र कुशवाहा को मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी
बताया जा रहा कि JDU में उपेंद्र कुशवाहा को ‘बड़ा प्रोफाइल’ दिया जाएगा। कुशवाहा लगातार अपने आपको राजनीति का केंद्र बिंदु बनाना चाहते थे, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे थे। समता पार्टी के टिकट पर 1995 में जब जंदाहा से चुनाव लड़े तो बुरी तरह से हार गए।
फिर 2000 में जंदाहा से ही विधायक बने। यहीं से उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक ग्राफ आगे बढ़ने लगा। 2004 में जब सुशील मोदी भागलपुर से सांसद चुने गए तो विपक्ष की कुर्सी खाली हुई। वहां नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को बैठा दिया। उपेंद्र कुशवाहा एक साल तक विपक्ष के नेता रहे। लेकिन 2005 में दलसिंहसराय से चुनाव हार जाने के बाद जदयू छोड़ दिया। 2008 में उन्होंने NCP का दामन थाम लिया।
लेकिन, केंद्र बिंदु में रहने की चाहत रखने वाले उपेंद्र कुशवाहा NCP में सरवाइव नहीं कर पाए। उन्होंने CM नीतीश कुमार से समझौता कर लिया। नीतीश ने 2010 में उन्हें जदयू के टिकट से राज्यसभा भेज दिया।
नौ साल बाद JDU में होगी वापसी
JDU से राज्यसभा सांसद बनने के बाद 2012 में उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर पार्टी से अलग लाइन ले लिया। FDI बिल पर अलग वोट किया, जिससे नीतीश कुमार नाराज हो गए। पार्टी में रहते हुए ही कुशवाहा ने नीतीश कुमार को तानाशाह तक कह डाला। फिर राजगीर में हो रहे जदयू के कार्यकर्ता सम्मेलन की भरी सभा में उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के सामने इस्तीफा देने का प्रस्ताव रख दिया।
बाद में पार्टी और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा भी दे दिया। 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने अरुण कुमार के साथ मिलकर RLSP नाम की एक नई पार्टी बनाई। उस समय नरेंद्र मोदी का उदय हो रहा था। BJP ने उपेंद्र को प्रमोट किया और वे NDA में शामिल हो गए। 2014 में RLSP ने 3 सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और तीनों जीत ली। उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में राज्यमंत्री बनाए गए।
कुशवाहा 2015 विधानसभा के चुनाव में मात्र 2 पर जीत पाए। उन्होंने NDA को छोड़ दिया और 2020 के विधानसभा चुनाव में शून्य पर आउट हो गए। अब अपने राजनैतिक ग्राफ को गिरता देख उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर नीतीश कुमार से हाथ मिलाने की तैयारी की है।
अब MLC का मामला सुलझ जाएगा
CM नीतीश कुमार भी काफी अरसे से उपेंद्र कुशवाहा को अपने खेमे में लाना चाहते थे। वजह, CM नीतीश कुमार ने लव-कुश समीकरण के सहारे खुद को सत्ता के करीब रखा है। लेकिन इस समीकरण में लव को जबरदस्त फायदा मिला तो कुश में नाराजगी दिखी। बिहार में कुर्मी समाज की आबादी 4 फीसदी के करीब है। ये अवधिया, समसवार, जसवार जैसी कई उपजातियों में विभाजित हैं।
नीतीश कुमार अवधिया हैं, जो संख्या में सबसे कम है, लेकिन नीतीश काल में यह सबसे ज्यादा फायदा पाने वाली जाति है। कुशवाहा बिरादरी का 4.5 फीसदी वोट है। ऐसे में दोनों मिल जाते हैं तो नीतीश कुमार और खासकर जदयू को इसका फायदा मिलेगा। इसको लेकर CM नीतीश कुमार ने अबतक राज्यपाल की तरफ से होने वाले MLC मनोनयन को रोक रखा है। जैसे ही उपेंद्र कुशवाहा JDU में शामिल होंगे, उनकी पत्नी स्नेहलता को MLC बनाया जा सकता है। बाद में उन्हे मंत्री भी बनाया जा सकता है।